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साहित्य अकादेमी में हिंदी पखवाड़े के दौरान ग़ज़ल संध्या का आयोजन

  • चार ग़ज़लकारों ने प्रस्तुत की अपनी ग़ज़लें

RNE, NEW DELHI.

साहित्य अकादेमी द्वारा मनाए जा रहे हिंदी पखवाड़े के दौरान आज अनेक कार्यक्रमों के साथ ही राजभाषा मंच के अंतर्गत ग़ज़ल संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें बी.के. वर्मा ‘शैदी’, कमलेश भट्ट कमल, मीनाक्षी जिजीविषा एवं ओमप्रकाश यती ने अपनी-अपनी ग़ज़ले प्रस्तुत कीं।

सर्वप्रथम मीनाक्षी जीजिविषा ने अपनी ग़ज़लें प्रस्तुत कीं। उनका एक शेर था -कमरा, खिड़की और दीवारों दर सुनते हैं, पत्थर के रोने को केवल पत्थर सुनते हैं। ओमप्रकाश यती ने सोचो ऐसा कर पाना आसान है क्या, और दर्द छुपाकर मुस्कराना आसान है क्या शेर सुनाया।

कमलेश भट्ट कमल की एक ग़ज़ल का शेर था लोगों में अंग्रेजियत के सौ असर मौजूद हैं, हाँ गुलामी के हस्ताक्षर अभी भी मौजूद हैं। अंत में वरिष्ठ रचनाकार बी.के. वर्मा ‘शैदी’ ने अपनी बात कही बौनों की बस्ती में हम ऊँचाई की बाते करते हैं। कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के उपसचिव (प्रशासन) कृष्णा किंबहुने ने अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्रम पहनाकर किया।

आज सुबह अकादेमी के कर्मचारियों के लिए हिंदी साहित्य प्रश्नोत्तरी एवं श्रुत लेख प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। प्रतियोगिताओं के संचालक क्रमशः अशोक मिश्र एवं मनोज मोहन थे।

पखवाड़े के दूसरे दिन कल (18 सितंबर 2024) अनुवाद प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता एवं स्वरचित कविताओं के पाठ का आयोजन किया गया था। स्वरचित रचना-पाठ कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री अनामिका ने की।

कार्यक्रम में संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले कई संस्थानों के कर्मचारियों ने अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया। कविता-पाठ के पश्चात् अनामिका जी ने पढ़ी गई कविताओं पर अपनी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह बहुत खुशी की बात है कि ऑफिस की रूखी दुनिया के बीच भी इन कर्मचारियों ने अपनी नमी को जिंदा रखा है। अंत में उन्होंने सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र एवं उपहार भेंट किए। उन्होंने अपनी कविताएँ भी सुनाईं। कार्यक्रम का संचालन संपादक अनुपम तिवारी ने किया।